संसद में कांग्रेस नेता ने पेश किया विधेयक, कहा- PM की अध्यक्षता वाले पैनल से हो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति

 
Congress leader introduced the bill in Parliament, said- Election commissioners should be appointed from the panel headed by PM

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने एक बार फिर से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का मुद्दा उठाया है। तिवारी ने लोकसभा में इसपर चर्चा के लिए एक प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किया है जो कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग करता है। इस समिति में  विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल करने की मांग की गई है। इसके अलावा यह बिल सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनावों सहित सभी राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को  विनियमित, निगरानी और अधीक्षण" करने के लिए चुनाव आयोग को अधिक शक्ति देने की भी मांग करता है। मनीष तिवारी ने तर्क दिया है कि बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों की आंतरिक कार्यप्रणाली और संरचनाएं बहुत अपारदर्शी और  हो गई हैं और उनके कामकाज को पारदर्शी, जवाबदेह और नियम आधारित बनाने की आवश्यकता है।



क्या है  प्राइवेट मेंबर बिल की मांग
इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के लिए छह साल के निश्चित कार्यकाल और क्षेत्रीय आयुक्तों के लिए नियुक्ति की तारीख से तीन साल की परिकल्पना की गई है। इस प्राइवेट मेंबर बिल में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विपक्ष के नेता या लोकसभा और राज्यसभा दोनों में सदन के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जजों को शामिल करने की मांग की गई है। उन्हें पूरी प्रक्रिया के तहत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ही हटा पाएंगे । इसके अलावा, सेवानिवृत्ति के बाद वे भारत सरकार, राज्य सरकारों और संविधान के तहत किसी भी कार्यालय में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होने चाहिए।

राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को विनियमित करने की शक्ति
यह विधेयक भारत के चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को विनियमित करने, निगरानी करने और पर्यवेक्षण करने के लिए आवश्यक उपाय प्रदान करने की भी मांग करता है। विधेयक में एक प्रावधान कहता है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनाव सहित आंतरिक कामकाज का विनियमन, निगरानी और अधीक्षण चुनाव आयोग में निहित होगा। विधेयक कहता है चुनाव आयोग पंजीकृत राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनाव को उनके संबंधित संविधानों के अनुसार विनियमित, निगरानी और पर्यवेक्षण करेगा, जब तक कि चुनाव आयोग द्वारा एक आदर्श आंतरिक संहिता निर्धारित नहीं की जाती है। 

इस स्थिति में पार्टी की मान्यता वापस ले सकता है चुनाव आयोग
यदि कोई पंजीकृत राजनीतिक दल अपने आंतरिक कार्यों के संबंध में चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई सलाह, अवधि और निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो ऐसे राजनीतिक दल की राज्य या राष्ट्रीय के रूप में मान्यता चुनाव आयोग द्वारा वापस ली जा सकती है। चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन आदेश) की धारा 16ए के तहत उचित लगता है।