Pregnancy: गर्भावस्था में है TV तो बरतें सावधानीं, वर्ना होगी बड़ी परेशानी

If there is TB in pregnancy, be careful otherwise there will be big trouble

 
कुछ स्त्रियां माहवारी के न आने पर दवाइयों का सेवन करना शुरू कर देती है, इस प्रकार की दवा का सेवन महिलाओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने गर्भाधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। गर्भधारण करने के बाद महिलाओं को किसी भी प्रकार की दवा के सेवन से पुर्व​ डाक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि आप कोई ऐसी दवा का सेवन न करें जो आपके और होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है। यदि महिलाओं को शूगर का रोग हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी चाहिए। यदि मिर्गी, सांस की शिकायत या फिर टीबी का रोग हो तो भी इसके लिए भी डाक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए।  यहीं नहीं, यह भी सत्य है कि आपके विचार और आपके कार्य भी गर्भाधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े।

मादा के गर्भाशय में भ्रूण के होने को गर्भावस्था (गर्भ + अवस्था) कहते हैं। इसके बाद महिला शिशु को जन्म देती है। आम तौर पर यह अवस्था मां बनने वाली महिलाओं में 9 माह तक रहती है, जिसे गर्भवती महिला कहते हैं। कभी कभी संयोग से एकाधिक गर्भावस्था भी अस्तित्व में आ जाती है जिससे एक से अधिक जुडवाँ सन्तान की उपस्थिति होती है।

गर्भ धारण


गर्भधारण की प्रक्रिया में पुरुष और स्त्री के सम्भोग के उपरान्त पुरुष द्वारा स्त्री की योनि के माध्यम से गर्भाशय में शुक्राणुओं को डालना होऐ है। गर्भाशय में शुक्राणु स्त्री के अंडाणु को निषेचित करते हैं। निषेचन की प्रक्रिया के बाद भ्रूण स्त्री के गर्भ में रहता है और अपने निश्चित समय पर बच्चे का जन्म होता है , जो कि आम तौर पर 40 हफ्ते़ माना जाता है।

गर्भावस्था आम तौर पर तीन भागों ( तिमाही) में बांटा गया है। पहली तिमाही में गर्भाधान से लेकर 12 से सप्ताह से है, गर्भाधान जब शुक्राणु अंडा निषेचित है। निषेचित अंडे तो फैलोपियन ट्यूब नीचे यात्रा और गर्भाशय के अंदर है, जहां यह भ्रूण और नाल आकार लेती है।

पहली तिमाही में गर्भपात का सबसे ज्यादा खतरा (भ्रूण या भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु) माना जाता है। दूसरी तिमाही 13 सप्ताह से 28 सप्ताह है। जिसमें भ्रूण के आंदोलन को महसूस किया जा सकता है।

28 सप्ताह से अधिक समय के बच्चों को उच्च गुणवत्ता चिकित्सा देखभाल के ज़रिये 90% गर्भाशय के बाहर जीवित रखा जा सकता हैं। तीसरी तिमाही 29 सप्ताह से 40 सप्ताह का समय है।

 

वाराणसी के जैतपुरा की रहने वाली शबीना (परिवर्तित नाम ) असामान्य थकान, गिरते वजन और मिचली आने से परेशान थी। इन परेशानियों को वह यह समझ कर नजरअंदाज करती रही कि यह सब उसके गर्भवती होने की वजह से हो सकते हैं।

हालत जब तेजी से बिगड़े तो उसने जिला महिला अस्पताल में उपचार शुरू कराया। जांच हुई तो पता चला कि वह दो माह से गर्भवती तो जरूर है लेकिन साथ ही उसे टीबी की बीमारी ने भी जकड़ रखा है।

 

कुछ ऐसी ही स्थिति सेनपुरा की पारुल विश्वकर्मा (परिवर्तित नाम ) के साथ हुई। चार माह की गर्भवती पारुल लगातार खांसी आने और तेजी से गिरते वजन से परेशान रही। जांच हुई तो पता चला कि गर्भवती होने के बाद उसे भी टीबी हो चुका है।

 

 

यह परेशानी सिर्फ शबीना और पारुल  की ही नहीं उनके जैसी अन्य महिलाओं की भी है, जो गर्भवती होने के साथ-साथ टीबी रोग से भी पीड़ित होती हैं। ऐसी गर्भवतियों के टीबी रोगी होने का पता तभी चल पाता है जब उनकी जांच होती हैं।

 

 

जिला महिला चिकित्सालय के स्त्री व प्रसूति रोग चिकित्सक डा. मधुलिका पांडेय कहती हैं “दरअसल टीबी व गर्भवस्था के दौरान होने वाली परेशानियों के कुछ लक्षण काफी मिलते-जुलते होते हैं। मसलन गर्भ ठहरने के बाद गर्भवती ने यदि पोषक आहारों पर ध्यान नहीं दिया तो उसका वजन कम होने लगता है। यह स्थिति टीबी की बीमारी होने पर भी होती है। इस रोग से ग्रसित होने पर रोगी कमजोर होने लगता है।

आम तौर पर गर्भवती को असमान्य थकान की भी परेशानी होती है। ऐसी परेशानी टीबी रोगी को भी होता है। गर्भावस्था में गिरते वजन, थकान, कमजोरी जैसे लक्षणों के साथ ही तेज बुखार, खांसी को मौसमी बीमारी मानकर गर्भवती इसे नजरअंदाज करने की कोशिश करती हैं, जबकि यह परेशानी उन्हें गर्भावस्था के दौरान हुए टीबी रोग की वजह से भी हो सकते हैं।”

गर्भावस्था के दौरान पोषण

भ्रूण पोषण के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान भ्रूण पोषण महत्वपूर्ण है, शिक्षा के ज़रिये महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान एक संतुलित ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।

कुछ महिलाओं को अपने आहार चिकित्सा की स्थिति, खाद्य एलर्जी, या विशिष्ट धार्मिक नैतिक विश्वासों के आधार पर पेशेवर चिकित्सक की सलाह की जरूरत हो सकती है। मुख्य रूप से पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड एवम हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, और खट्टे फलो का सेवन करना चाहिये।

यह महत्वपूर्ण है कि महिला को गर्भावस्था के दौरान डीएचए की पर्याप्त मात्रा में उपभोग करना चाहिये,डीएचए ओमेगा -3 मस्तिष्क और रेटिना में एक प्रमुख संरचनात्मक फैटी एसिड होता है, और स्वाभाविक रूप से मां के दूध में पाया जाता है,यह नर्सिंग के दौरान शिशु के स्वास्थ्य का समर्थन करता है।साथ ही विटामिन (D) और कैल्शियम भी आहार में लेना चाहिये।

गर्भावस्था के दौरान सावधानियां

कुछ स्त्रियां माहवारी के न आने पर दवाइयों का सेवन करना शुरू कर देती है, इस प्रकार की दवा का सेवन महिलाओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने गर्भाधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए।

गर्भधारण करने के बाद महिलाओं को किसी भी प्रकार की दवा के सेवन से पुर्व​ डाक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि आप कोई ऐसी दवा का सेवन न करें जो आपके और होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है।

यदि महिलाओं को शूगर का रोग हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी चाहिए। यदि मिर्गी, सांस की शिकायत या फिर टीबी का रोग हो तो भी इसके लिए भी डाक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए।

यहीं नहीं, यह भी सत्य है कि आपके विचार और आपके कार्य भी गर्भाधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े।

जैसे ही पुष्टि हो जाती है कि आप गर्भवती हैं उसके बाद से प्रसव होने तक आप किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की निगरानी में रहें तथा नियमित रूप से अपनी चिकित्सीय जाँच कराती रहें।

गर्भधारण के समय आपको अपने रक्त वर्ग (ब्ल्ड ग्रुप), विशेषकर आर. एच. फ़ैक्टर की जांच करनी चाहिए। इस के अलावा रूधिरवर्णिका (हीमोग्लोबिन) की भी जांच करनी चाहिए।

यदि आप मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थाइराइड आदि किसी, रोग से पीड़ित हैं तो, गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से दवाईयां लेकर इन रोगों को नियंत्रण में रखें।

गर्भावस्था के प्रारंभिक कुछ दिनों तक जी घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा रक्त चाप बढ़ जाना स्वाभाविक है लेकिन यह समस्याएं उग्र रूप धारण करें तो चिकित्सक से सम्पर्क करें।

गर्भावस्था के दौरान पेट में तीव्र दर्द और योनि से रक्त स्राव होने लगे तो इसे गंभीरता से लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं।

गर्भावस्था में कोई भी दवा-गोली बिना चिकित्सीय परामर्श के न लें और न ही पेट में मालिश कराएं। बीमारी कितना भी साधारण क्यों न हो, चिकित्सक की सलाह के बगैर कोई औषधि न लें।

यदि किसी नए चिकित्सक के पास जाएं तो उसे इस बात से अवगत कराएं कि आप गर्भवती हैं क्योकि कुछ दवाएं गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव छोडती है।

चिकित्सक की सलाह पर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं व लोहतत्व (आयर्न) की गोलियों का सेवन करें।

गर्भावस्था में मलेरिया को गंभीरता से लें, तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं।

गंभीरता से चेहरे या हाथ-पैर में असामान्य सूजन, तीव्र सिर दर्द, आखों में धुंधला दिखना और मूत्र त्याग में कठिनाई की अनदेखी न करें, ये खतरे के लक्षण हो सकते हैं।

गर्भ की अवधि के अनुसार गर्भस्थ शिशु की हलचल जारी रहनी चाहिए। यदि बहुत कम हो या नहीं हो तो सतर्क हो जाएं तथा चिकित्सक से संपर्क करें।

आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें, इस के लिए आवश्यक है कि गर्भधारण और प्रसव के बीच आप के वजन में कम से कम १० कि.ग्रा. की वृद्धि अवश्य हो।

गर्भावस्था में अत्यंत तंग कपडे न पहनें और न ही अत्याधिक ढीले।

इस अवस्था में ऊची एड़ी के सैंडल न पहने। जरा सी असावधानी से आप गिर सकती है

इस नाजुक दौर में भारी क्ष्रम वाला कार्य नहीं करने चाहिए, न ही अधिक वजन उठाना चाहिए। सामान्य घरेलू कार्य करने में कोई हर्ज नहीं है।

इस अवधि में बस के बजाए ट्रेन या कार के सफ़र को प्राथमिकता दें।

आठवें और नौवे महीने के दौरान सफ़र न ही करें तो अच्छा है।

गर्भावस्था में सुबह-शाम थोड़ा पैदल टहलें।

चौबीस घंटे में आठ घंटे की नींद अवश्य लें।

प्रसव घर पर कराने के बजाए अस्पतालप्रसूति गृह या नर्सिगं होम में किसी कुशल स्त्री रोग विशेषज्ञ से कराना सुरक्षित रहता है।

गर्भावस्था में सदैव प्रसन्न रहें। अपने शयनकक्ष में अच्छी तस्वीरें लगाए।

हिंसा प्रधान या डरावनी फ़िल्में या धारावाहिक न देखें।

 गर्भावस्था में टीबी से जच्चा-बच्चा को खतरा- 

डा. मधुलिका बताती हैं कि “गर्भावस्था में टीबी का समय से उपचार न होने से यह गर्भवती के साथ-साथ गर्भस्थ के लिए भी खतरनाक हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान टीबी गर्भवती के शरीर को धीरे-धीरे खोखला कर देता है।

उसका वजन तेजी से गिरने के साथ ही उसमें खून की इतनी कमी हो जाती है कि प्रसव के दौरान उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। इतना ही नहीं टीबी से ग्रसित गर्भवती के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास ठीक से नहीं हो पाता है।  

ऐसी महिलाओं का गर्भपात होने अथवा समय से पूर्व प्रसव की भी आशंका रहती है। समय से पूर्व हुए नवजात काफी कमजोर अथवा अविकसित होते हैं, ऐसे में जन्म लेने के कुछ ही देर बाद उनकी मौत का भी भय होता है।

उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान असामान्य लक्षण दिखते ही गर्भवती की तत्काल जांच करानी चाहिए। टीबी रोगियों की जांच व उपचार सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त है। साथ ही उन्हें पोषक आहार के लिए हर माह 500 रुपये दिए जाते है।

लिहाजा गर्भावस्था में टीबी होने पर घबराने की जरूरत नहीं। सही समय से उपचार कराना चाहिए ताकि गर्भवती व उसके होने वाले शिशु को किसी तरह का खतरा न रहे।” 

 इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज 

•    दो सप्ताह से अधिक की खांसी

•    खांसी में बलगम के साथ खून का आना

•    लगातार  बुखार का आना

•    गर्दन की ग्रंथियों में सूजन

•    रात में सोते समय पसीना आना

•    कम काम करने के बाद भी थकावट