"राँड़ साँड़ सीढ़ी सन्यासी, इनसे बचे तो सेवे काशी"... आज 67 साल की हुई वाराणसी, जहा मिलती हैं जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति

"Rand saand stair sanyasi, if you are saved from them, you will serve Kashi"... Varanasi turns 67 today, where one gets freedom from the cycle of birth and rebirth
 
"राँड़ साँड़ सीढ़ी सन्यासी, इनसे बचे तो सेवे काशी"... आज 67 साल की हुई वाराणसी, जहा मिलती हैं जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति
काशी कबहुँ न छोड़िये, विश्व्नाथ का धाम।।मरने पर गंगा मिले, जियते लंगड़ा आम..

 

काशी या वाराणसी भारतीय सभ्‍यता और परंपराओं के दृष्‍टिकोण से महत्‍वपूर्ण एक शहर है। इसे प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्‍कृतिक महत्‍व का केंद्र माना जाता है। इसका ऐतिहासिक महत्‍व मुख्यतः हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्‍थलों में से एक होने के कारण है। काशी को पुराणों में शिव पुराण में 'अविमुक्‍त' और 'आनंदवान' के नामों से जाना जाता है। इसके अलावा यह ब्रह्माण्‍ड की उत्‍पत्ति केंद्र (नभिस्‍तान) माना जाता है और इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है।

 

काशी शहर ने अपनी विविधता के लिए भी प्रसिद्धता प्राप्‍त की है। यह गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण गंगा स्‍नान के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह भारतीय कला, संगीत, तंत्र, विज्ञान, औषधि, शिक्षा, और शास्त्रों के क्षेत्र में भी महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अंदर कई पुराणिक और ऐतिहासिक स्‍थल, मंदिर और धार्मिक स्थल स्थित हैं। 

जिन्हें देखकर आपको इस शहर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व समझ में आता है। यहां प्रमुखतः काशी विश्वनाथ मंदिर है, जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है। इस मंदिर को भगवान शिव के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और यहां के संबंध में कई पुराणिक कथाएं जुड़ी हैं। इसके आस-पास कई अन्‍य मंदिर भी हैं जैसे कालभैरव मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, संकटमोचन मंदिर आदि।

काशी का ऐतिहासिक महत्व भी अद्वितीय है। इसे गुप्तकाल से लेकर मुग़लकाल और ब्रिटिश शासनकाल तक कई शासकों ने आपातकालीन बनाया। काशी का अद्वितीय वास्तुकला, शौर्य, और साहित्यिक धरोहर भी इसे विशेष बनाती है। यहां की गलियों, मोहल्लों, और बाजारों की संरचना भी आपको प्राचीन समय की याद दिलाती है।

काशी में मनाए जाने वाले त्‍योहार और मेलों का भी एक विशेष महत्व है। यहां हर साल महाशिवरात्रि पर्व, दिवाली, छठ पूजा, और गंगा महोत्‍सव जैसे त्‍योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन त्‍योहारों के दौरान हजारों श्रद्धालु इस नगरी में आकर पूजा-अर्चना करते हैं और गंगा घाट पर दीपदान करते हैं।

इसके अलावा, काशी विश्वविद्यालय भी यहां स्थित है और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में अहम भूमिका निभाता है। यहां के कई विभागों और महाविद्यालयों में छात्रों को विभिन्न विषयों में उच्चतर शिक्षा का आदान-प्रदान होता है। काशी विश्वविद्यालय का छात्र-छात्रा समूह यहां की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने का भी महत्वपूर्ण कार्य करता है।

काशी शहर का ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक महत्व इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं। इसकी पवित्रता, मान्यताएं, और संस्कृति ने लोगों के मनोहारी अनुभव को अपार बनाया है। काशी के सच्चे चर्चित होने के पीछे इसका अपार धार्मिक महत्व है जो इसे हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाता है।

यहां के मंदिर, घाट, और त्‍योहारों की विविधता ने काशी को एक प्रमुख पर्यटन स्थल बना दिया है। विदेशी पर्यटकों के अलावा देशभर से भी लाखों लोग हर साल काशी आकर इसकी महिमा का आनंद लेते हैं। काशी शहर की खूबसूरती, उसका ऐतिहासिक महत्व, धार्मिक विश्‍वास और सांस्कृतिक विरासत ने इसे एक सच्‍चे पर्यटन स्थल के रूप में प्रमुखता प्राप्त की है।

वाराणसी गजेटियर, जो कि 1965 में प्रकाशित किया गया था, उसके दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किए जाने की तिथि अंकित है। इसके साथ ही गजेटियर में इसके वैभव संग विविध गतिविधियां भी इसका हिस्सा हैं।

गजेटियर में इसके काशी, बनारस और बेनारस आदि नामों के भी प्राचीनकाल से प्रचलन के तथ्य व प्रमाण हैं मगर आजादी के बाद प्रशासनिक तौर पर 'वाराणसी' नाम की स्वीकार्यता राज्य सरकार की संस्तुति से इसी दिन की गई थी। वाराणसी की संस्तुति जब शासन स्तर पर हुई तब डा. संपूर्णानंद मुख्यमंत्री थे। स्वयं डा. संपूर्णानंद की पृष्ठभूमि वाराणसी से थी और वो यहां काशी विद्यापीठ में अध्यापन से भी जुड़े रहे थे।