नेपाल: नागरिकता बिल को लेकर तनाव बढ़ा, आम चुनाव टलने के आसार

संसद से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक पर दस्तखत करने से राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के इनकार के बाद नेपाल में राजनीतिक ध्रुवीकरण तीव्र हो गया है। अब यहां ये कयास जोर पकड़ गया है कि इस मुद्दे पर खड़े हुए संवैधानिक संकट और राजनीतिक तनाव के कारण 20 नवंबर को होने वाले संसद और प्रांतीय असेंबलियों के आम चुनाव टल सकते हैं।
राष्ट्रपति के इनकार के बाद से देश भर में अलग-अलग राजनीतिक दल सड़कों पर उतर आए हैं। इनसे देश में आम राजनीतिक प्रक्रिया के अस्त-व्यस्त होने का अंदेशा गहरा गया है। इस बीच राजनीतिक दलों के बीच तीखी बयानबाजी भी चल रही है।
सत्ताधारी गठबंधन के चार दलों ने विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) पर अशांति का माहौल बनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि पूर्व प्रधानमंत्री और यूएमएल नेता केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रपति भंडारी के निर्णय को गलत ढंग से प्रभावित किया।
नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता देव प्रसाद गुरुंग ने कहा है- ‘राष्ट्रपति का निर्णय एक तरह का तख्ता पलट है।
अगर आप शासन की प्रणाली को भंग करते हैं, तो उसका असर चुनावों पर भी पड़ेगा। हमने राष्ट्रपति के निर्णय का विरोध करने का फैसला किया है, क्योंकि इसके जरिए लोकतांत्रिक राज्य की वैधता को चुनौती दी गई है।’
गुरुंग ने आरोप लगाया कि यूएमएल निलंबित चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा को भी बहाल कराने की कोशिश कर रही है। यह देश में उथल-पुथल मचाने की उसकी साजिश का हिस्सा है। माओइस्ट सेंटर के उप महासचिव बरशमान पुन ने भी एक ट्विट में राष्ट्रपति के इस कदम को चुनाव स्थगित कराने की कोशिश का हिस्सा बताया है।
राष्ट्रपति भंडारी ने एक बार इस बिल को दोबारा विचार के लिए संसद को लौटा दिया था। संसद ने विधेयक को उसके मूल रूप में फिर से पारित किया। अब उन्होंने इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है,
जबकि संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक दोबारा पारित बिल पर दस्तखत करने के लिए राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
गुरुवार को सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दलों ने राष्ट्रपति के निर्णय को कोर्ट में चुनौती ना देने का फैसला किया। संविधान विशेषज्ञों से राय-मशविरे के बाद उन्होंने एक बयान में कहा कि वे इस मामले को और ज्यादा गरमाना नहीं चाहते हैं।
इन दलों ने आरोप लगाया है कि ओली आम चुनाव में अपनी पार्टी की हार की आशंका से डरे हुए हैं, इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति से मिल कर चुनावों को टलवाने की साजिश रची है। लेकिन सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) ने कहा है कि ओली की ये मंशा पूरी नहीं होने दी जाएगी।
स्वतंत्र पर्यवेक्षक श्याम श्रेष्ठ ने अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा- ‘यह साफ है कि राष्ट्रपति ने ये फैसला अगले चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया है।
ये राजनीतिक चाल उन्होंने इस डर के कारण चली है कि आम चुनाव में यूएमएल हार जाएगी।’ भंडारी यूएमएल नेता रही हैं और उनको यूएमएल के शासनकाल में राष्ट्रपति बनाया गया था।
इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री ओली ने राष्ट्रपति के निर्णय के स्वागत किया है। उन्होंने निलंबित चीफ जस्टिस राणा के प्रति फिर अपना समर्थन जताया है।