पंडित को दक्षिणा देना जरूरी क्यों है? जानिए दक्षिणा देने के नियम, किसे, कब और कितनी देनी चाहिए दक्षिणा
आईये आज हम आपको बताते हैं कि दक्षिणा शब्द क्या है आखिर इसकी उपयोगिता कितनी है। क्या ब्राम्हण को दक्षिणा देना अनिवार्य है?
किसी भी पूजा, अनुष्ठान, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में दक्षिणा (Dakshina) का बहुत महत्व होता है। ‘दक्षिणा‘ (Dakshina) शब्द में भेंट, उपहार, शुल्क, पारिश्रमिक आदि सभी अर्थों का भाव समाहित है। वहीं अगर हम इसे आसान भाषा में कहें तो किसी के सम्मान में धनराशि देना ‘दक्षिणा‘ है।
आपको बता दें कि दक्षिणा के बगैर यज्ञ, हवन निष्फल होता है।
किसी भी यज्ञ की सार्थकता दक्षिणा (Dakshina) से ही है। दरअसल दक्षिणा एक देवी का नाम है जो यज्ञ की पत्नी हैं। चूंकि पत्नी अद्र्धांगिनी होती है, ऐसे में बगैर दक्षिणा के कोई भी यज्ञ कभी पूरा हो ही नहीं सकता है।
गीता के अनुसार वही यज्ञ सात्विक होता है जो शास्त्रों के निर्देश के अनुसार संपन्न किया जाता है। जो यज्ञ शास्त्रों की आज्ञा की अवहेलना करके वैदिक मंत्रों तथा पुरोहितों की दक्षिणा (Dakshina) दिये बगैर श्रद्धा के बिना संपन्न किया जाता है,
वह तामसिक यज्ञ होता है। बगैर दक्षिणा के ऐसा यज्ञ कराने वाला न तो प्रसिद्धि पाता है और न सुख व परम गति को प्राप्त करता है। कहने का मतलब यह कि उसके द्वारा किया गया यज्ञ निष्फल हो जाता है।
जानिए किसको कितनी दक्षिणा देनी चाहिए?
ऐसी मान्यता है कि यज्ञ आदि संपन्न होने पर व्यक्ति को पूजा कराने वाले पुरोहित को समुचित दक्षिणा (Dakshina) देनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति धनवान है तो उसे सामान्य से दोगुनी दक्षिणा (Dakshina) प्रसन्न होकर देनी चाहिए और यदि कोई बहुत ज्यादा धनवान यानी रईस है तो उसे तीन गुना दक्षिणा (Dakshina) देना चाहिए।
यदि कोई निर्धन है तो उसे सामान्य से भी आधी दक्षिणा (Dakshina) देनी चाहिए और यदि कोई अत्यंत निर्धन है तो उसे सामान्य से भी दक्षिणा का चौथाई भाग देना चाहिए।
आपको सबसे महत्वपूर्ण बात बता दें कि ब्राम्हण (अनुष्ठान कराने वाला) को दक्षिणा प्रसन्न होकर बिना किसी संकोच किये देना चाहिए।
दक्षिणा कब देनी चाहिए
आपको बता दें कि किसी भी पूजा, हवन या यज्ञ आदि के तुरंत बाद दक्षिणा (Dakshina) जरूर दे देनी चाहिए। दक्षिणा देने में कभी भी विलंब नहीं करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि पूजा के बाद अधिक से अधिक एक घटी यानी 24 मिनट के भीतर दक्षिणा दे देनी चाहिए।
नही तो जैसे जैसे समय बढ़ता चला जाता है दक्षिणा भी समय के अनुसार बढ़ती चली जाती है और उसे जिसे नहीं देने पर ब्रह्म हत्या का पाप लगता है। ऐसे में हमेशा पूजा के तुरंत बाद हमें दक्षिणा तुरंत ही दे देनी चाहिए।